बावरी राधा के प्यार की,
ये कैसी थी रीत,
मीराने भी शाम से,
ये कैसी लगायी थी प्रित...
सांवले मनोहर शाम भी,
दोनोसे करते थे प्रेम अपार,
एक के प्यार में थी भक्ति,
तो दुजी के भक्ति में था प्यार...
राधा थी शाम की दीवानी,
तो मीरा भी थी दीवानी हरि की,
उलझन में फंसे हुए प्राण है,
ऐसी कुछ अवस्था थी जगत मुरारी की...
मीरा ने पिया था प्रेमविष का प्याला,
राधा भी तो रही हरि प्रेम की प्यासी,
एक को थी हरि चरणों की आस,
तो दुजी हरि चरणों की दासी...
अचंबित था प्यार दोनों का,
भाव विभोर थी भक्ति,
एक रही हरि दरस की प्यासी,
तो दुजी के हिस्सेमें आयी विरक्ति....
नंदू
ये कैसी थी रीत,
मीराने भी शाम से,
ये कैसी लगायी थी प्रित...
सांवले मनोहर शाम भी,
दोनोसे करते थे प्रेम अपार,
एक के प्यार में थी भक्ति,
तो दुजी के भक्ति में था प्यार...
राधा थी शाम की दीवानी,
तो मीरा भी थी दीवानी हरि की,
उलझन में फंसे हुए प्राण है,
ऐसी कुछ अवस्था थी जगत मुरारी की...
मीरा ने पिया था प्रेमविष का प्याला,
राधा भी तो रही हरि प्रेम की प्यासी,
एक को थी हरि चरणों की आस,
तो दुजी हरि चरणों की दासी...
अचंबित था प्यार दोनों का,
भाव विभोर थी भक्ति,
एक रही हरि दरस की प्यासी,
तो दुजी के हिस्सेमें आयी विरक्ति....
नंदू
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