Monday, February 14, 2011

एक शहर ऐसा भी...

एक शहर ऐसा भी,
जहाँ आदमी पहले उठता है,
घडी के काटे बाद में,
जाग जाते है.......

एक शहर ऐसा भी,
जहाँ पहले जुते घीस जाते है,
दरबदर की ठोकरे खाने के बाद,
कही जाके आशियाँ बनता है.....

एक शहर ऐसा भी,
जहाँ आदमी के हौसले,
टुटने लगते है,
तब कही जाके,
कोई काम मिलता है...

एक शहर ऐसा भी,
जहाँ आदमी पहले,
बुढा होने लगता है,
बाद में उसके लिये,
शादी के रिश्ते आ जाते है......

एक शहर ऐसा भी,
जहाँ हौसले तो बुलंद है,
मगर काम की कमी है,
बेरोजगारी बढाने के लिये,
इतनी भीड इकठ्ठा जमी है.....

एक शहर ऐसा भी,
जिसने इतनी मुसिबते आने के बाद भी,
अपनी इंन्सानियत नही खोई है,
चट्टाने फौलाद की तरह बुलंद है,
मगर,सागर की हर लहर,
सिने में दर्द छुपा के रोई है.....

एक शहर ऐसा भी,
जहाँ ना ही घडी की सुईयों को है आराम,
ना ही चलते पावों को है आराम,
ऐसे शहर के सामने नतमस्तक होता हुँ,
और करता हुँ उसे दिलोजान से "सलाम"....

                 







नंदू

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