मैने जब भी तेरे आखोमें,
गेहराई देखनी चाही,
वहा तु नही,
नदी की चंचलता नजर आई....
मैने जब भी तेरी,
झुल्फें उलझनी चाही,
वहा तु नही,
आसमाँ से काली घटा घिर आई....
मैने जब भी तेरे,
गालों को सेहलाना चाहा,
वहा तु नही,
सुबह की आभा फैलती नजर आई....
मैने जब भी तेरे,
ओंठों को छुना चाहा,
वहा तु नही,
चाँद की शितलता महसुस हुई....
मैने जब भी तेरी,
कमर परखनी चही,
वहा तु नही,
सागर की लेहेर लेहराई....
मैने जब भी तेरे,
कदम देखने चाहे,
वहा तु नही,
हिरन की चपलता नजर आई....
मैने जब भी तुम्हे,
अपनी बाहो में भरना चाहा,
वहा तु नही,
तेरी परछाई नजर आई....
मैने जब भी उस,
परछाई को पकडना चाहा,
वो हमेशा मुझसे मुस्कराते,
आंख मिचौली खेलते नजर आई......
वो हमेशा मुझसे मुस्कराते,
आंख मिचौली खेलते नजर आई......
नंदू
गेहराई देखनी चाही,
वहा तु नही,
नदी की चंचलता नजर आई....
मैने जब भी तेरी,
झुल्फें उलझनी चाही,
वहा तु नही,
आसमाँ से काली घटा घिर आई....
मैने जब भी तेरे,
गालों को सेहलाना चाहा,
वहा तु नही,
सुबह की आभा फैलती नजर आई....
मैने जब भी तेरे,
ओंठों को छुना चाहा,
वहा तु नही,
चाँद की शितलता महसुस हुई....
मैने जब भी तेरी,
कमर परखनी चही,
वहा तु नही,
सागर की लेहेर लेहराई....
मैने जब भी तेरे,
कदम देखने चाहे,
वहा तु नही,
हिरन की चपलता नजर आई....
मैने जब भी तुम्हे,
अपनी बाहो में भरना चाहा,
वहा तु नही,
तेरी परछाई नजर आई....
मैने जब भी उस,
परछाई को पकडना चाहा,
वो हमेशा मुझसे मुस्कराते,
आंख मिचौली खेलते नजर आई......
वो हमेशा मुझसे मुस्कराते,
आंख मिचौली खेलते नजर आई......
नंदू
No comments:
Post a Comment