Saturday, February 19, 2011

"मालुम है मुझे"

मेरा हर पल हर लम्हा,
तेरे चरणों में बहाना चाहता हुँ,
ऐ भारत माँ,
मै तेरे शरण में आना चाहता हुँ......

हाँ तुझे परकियोंने घेरा है,
मालुम है मुझे...
लेकिन अपनोंने भी तो जमाया,
हुआ यहाँ डेरा है,
मालुम है मुझे...
घातक वो नही जो बाहरी,
हमलावर है,
घातक वो है जिन्होंने,
मिठे खंजर से तुझे मारा है,
मालुम है मुझे.....

अंग्रेजों से लडकर आझादी,
हासील हुई थी,
तेरा सर फक्र से उंचा हुआ था,
आज इनकी काली करतुतों से,
तेरी आंखे शर्म से झुक गयी है,
मालुम है मुझे.....

तुझे बेबस करनेवाले कोई,
और नही, तेरे ही सपूत है,
मालुम है मुझे....
तेरा सारा धन बाहर के मुल्कों में,
बाट्नेवाले, तेरे ही सपूत है,
मालुम है मुझे......

आज फिर से द्रौपदी का,
शील हरण होने जा रहा है,
तब लाज रखने कृष्ण सखा था,
आज वो भी द्वारका में नही है,
मालुम है मुझे......

मगर एक दिन ऐसा भी आयेगा,
सोया हुआ इन्सान जाग जायेगा,
तब तेरी आंखे भी नम हो जायेगी,
तभी सही मायनो में,"लोकशाही"आयेगी,
मालुम है मुझे.....
मालुम है मुझे.....
मालुम है मुझे.....












 नंदू

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