Wednesday, July 27, 2011

विरानी....(हिंदी)

भिनीभिनी सी खुशबु,
आती है मिट्टी की,
जब हौले से पानी,
बरसने लगता है,
दूर कही कोयल की,
कुहुक सुनाई देती है,
और मन सजना के लिये,
तरसने लगता है....

बन में मोर जब,
बेहोश नाचने लगता है,
तब मन मुरत को,
साजन तराशने लगता है,
जब धुंधली सी,
हो जाती है तस्वीर उसकी,
तब ये मन अंजाने में,
किसी को तलाशने लगता है....

अब भी बरसात हो रही है,
बाहर भी और मन में भी,
अब भी तेरी यादे जलाती है,
तन को भी और मनको भी,
जब भी कोई हलकीसी आहट,
सुनाई देती है दरवाजे पर,
पलके ढुंढने लगती है,
दूर से आनेवाले कोई उन को भी....

अब तो बारीश थम गयी है,
मगर यादों का जमघट वैसाही है,
मन की बरसात कौन रोकेगा,
बारीश का संकट वैसाही है,
अब तो मन भी बेचारा बेजान सा,
उन यादों में झुलसने लगता है,
दूर पहाडी के पास कोई पागल,
अपनी ही धुन में विरानी गाने लगता है....












नंदू

No comments:

Post a Comment